शिमला।
हरतालिका तीज का व्रत हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा व्रत माना जाता है। यह तीज का त्यौहार भाद्रपद मास शुक्ल की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। खासतौर पर महिलाओं द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता है। कम उम्र की लड़कियों के लिए भी यह हरतालिका का व्रत श्रेष्ठ समझा गया है। इस बार यह व्रत कल यानी शुक्रवार 21 अगस्त को होगा।
वशिष्ठ ज्योतिष सदन के अध्यक्ष व जाने माने ज्योतिष विशेषज्ञ पं. शशि पाल डोगरा के मुताबिक विधि-विधान से हरतालिका तीज का व्रत करने से जहां कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है, वहीं विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है। उनका कहना है कि हरतालिका तीज में भगवान शिव, माता गौरी एवं गणेश जी की पूजा का महत्व है। यह व्रत निराहार एवं निर्जला किया जाता हैं। शिव जैसा पति पाने के लिए कुंवारी कन्या इस व्रत को विधि विधान से करती हैं।
महिलाओं में संकल्प शक्ति बढाता है हरतालिका तीज का व्रत।
पं. शशिपाल डोगरा के मुताबिक हरितालिका तीज का व्रत महिला प्रधान है। इस दिन महिलाएं बिना कुछ खाए-पिए व्रत रखती हैं। यह व्रत संकल्प शक्ति का एक अनुपम उदाहरण है। संकल्प अर्थात किसी कर्म के लिए मन मे निश्चित करना कर्म का मूल संकल्प है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार संकल्प हमारी आंतरिक शक्तियों का सामुहिक निश्चय है। इसका अर्थ है-व्रत संकल्प से ही उत्पन्न होता है। व्रत का संदेश यह है कि हम जीवन मे लक्ष्य प्राप्ति का संकल्प लें। संकल्प शक्ति के आगे असम्भव दिखाई देता लक्ष्य सम्भव हो जाता है। माता पार्वती ने जगत को दिखाया कि संकल्प शक्ति के सामने ईश्वर भी झुक जाता है।
अच्छे कर्मों का संकल्प सदा सुखद परिणाम देता है। उनका कहना था कि इस व्रत का एक सामाजिक संदेश विषेशतः महिलाओं के संदर्भ मे यह है कि आज समाज में महिलाएं बीते समय की तुलना में अधिक आत्मनिर्भर व स्वतंत्र हैं। महिलाओं की भूमिका में भी बदलाव आए हैं। घर से बाहर निकलकर पुरुषों की भांति सभी कार्य क्षेत्रों में सक्रिय हैं। ऐसी स्थिति में परिवार व समाज इन महिलाओं की भावनाओं एवं इच्छाओं का सम्मान करें, उनका विश्वास बढाएं, ताकि स्त्री व समाज सशक्त बने।
हरतालिका तीज व्रत विधि और नियम
पं. शशिपाल डोगरा के मुताबिक हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं। प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने का समय। हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती, गणेश एवं रिद्धि सिद्धि जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से बनाई जाती है। विविध पुष्पों से सजाकर उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर चौकी रखी जाती है। चौकी पर एक अष्टदल बनाकर उस पर थाल रखते हैं। उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं। सभी प्रतिमाओं को केले के पत्ते पर रखा जाता है। सर्वप्रथम कलश के ऊपर नारियल रखकर लाल कलावा बांध कर पूजन किया जाता है। कुमकुम, हल्दी, चावल, पुष्प चढ़ाकर विधिवत पूजन होता है। कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती है। उसके बाद शिव जी की पूजा जी जाती है। तत्पश्चात माता गौरी की पूजा की जाती है। उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता है। इसके बाद अन्य देवताओं का आह्वान कर षोडशोपचार पूजन किया जाता है। इसके बाद हरतालिका व्रत की कथा पढ़ी जाती है। इसके पश्चात आरती की जाती है, जिसमें सर्वप्रथम गणेश जी की पुनः शिव जी की फिर माता गौरी की आरती की जाती है। इस दिन महिलाएं रात्रि जागरण भी करती हैं और कथा-पूजन के साथ कीर्तन करती हैं। प्रत्येक प्रहर में भगवान शिव को सभी प्रकार की वनस्पतियां जैसे बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण किया जाता है। आरती और स्तोत्र द्वारा आराधना की जाती है। हरतालिका व्रत का नियम है कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता। प्रातः अन्तिम पूजा के बाद माता गौरी को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं। ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता है। उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोडा जाता है। अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित किया जाता है।
भगवती-उमा की पूजा के लिए ये मंत्र बोलना चाहिए उमायै नम:
पार्वत्यै नम:
जगद्धात्र्यै नम:
जगत्प्रतिष्ठयै नम:
शांतिरूपिण्यै नम:
शिवायै नम:
भगवान शिव की आराधना इन मंत्रों से करनी चाहिए
हराय नम:
महेश्वराय नम:
शम्भवे नम:
शूलपाणये नम:
पिनाकवृषे नम:
शिवाय नम:
पशुपतये नम:
महादेवाय नम:
हरतालिका तीज पूजा मुहूर्त
हरितालिका पूजन प्रातःकाल ना करके प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त में किया जाना ही शास्त्रसम्मत है। प्रदोषकाल निकालने के लिये आपके स्थानीय सूर्यास्त में आगे के 96 मिनट जोड़ दें तो यह एक घंटे 36 मिनट के लगभग का समय प्रदोष काल माना जाता है।
प्रदोष काल मुहूर्त : सायं 06:41 से रात्रि:8:58 तकपारण अगले दिन प्रातः काल 8 बजकर 34 मिनट के बाद करना उत्तम रहेगा।