इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज एवं अस्पताल के रेडयोलॉजी विभाग में तैनात सहायक प्रोफेसर डा. शिखा सूद ने एक बार फिर इतिहास रचा है। इस बार उन्होंने जिला शिमला के कोटखाई के बगदा से आए 66 साल के अमर सिंह को हपैटिक आरटरी की क्वाइलिंग करके नई जिंदगी दी है।
यह उपचार पहली बार आईजीएमसी में हुआ है। अमर सिंह की गंभीर अवस्था को देखते हुए तुंरत उसका सीटी स्कैन एवं अल्टासाउंड किया गया जिसमें इस बीमारी का पता चला कि उसकी पित की थैली में तीन सेंटीमीटर की पत्थरी है जो पित की थैली को चीरती हुई पित की नली में फंस गई है।
यही नहीं इसके साथ ही पत्थर ने साथ ही पड़ी हपैटिक आरटरी को भी चीर दिया जिसके कारण मरीज की हालत गंभीर हुई और उसे सूडोएन्यूरिज्म हो गया। ऐसी गंभीर अवस्था में मरीज में खून नसों से बाहर एकत्रित हो जाता है तथा किसी भी समय फट जाने से मरीज की मौत होने की आशंका बढ़ जाती है।
ऐसी स्थिति में मरीज का आपरेशन नहीं किया जा सकता। हिमाचल प्रदेश के लिए और इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज के लिए यह गर्व की बात है कि डा. शिखा पहली ऐसी डाक्टर हैं जिन्होंने हाल ही में एम्स न्यू दिल्ली में इंटरवेंशन रेडयोलॉजी में प्रशिक्षा प्राप्त की है। उन्होंने गैस्टोइन्टैस्टाइनल रेडियोलॉजी में फैलोशिप की है। यहां आईजीएमसी में पुन: कार्यभार संभालने के बाद डा. शिखा ने विभाग में हार्डवेयर की व्यवस्था करवाई और इस मरीज का उपचार करके उन्हें नई जिंदगी दी।
यहां बता दें कि डा. शिखा इसके अलावा अन्य कई और तरीके के इंटरवेशनस कर रही है जो कि प्रदेश के उच्चतम शिक्षण संस्थान आईजीएमसी में पहली मर्तबा हो रही है।
डा. शिखा सूद अभी तक कई मरीजों का उपचार बिना चीर फाड़ के कर चुकी हैं। उन्होंने मरीज की टांग की नस से जाते हुए हपैटिक आटरी तक पहुंच कर सूडोएन्यूरिज्म को मेन आरटिरयल फलो से अलग कर दिया। साढ़े चार घंटे तक चला यह आपरेशन पूरी तरह सफल रहा…। डा. शिखा ने बताया कि उपचार के दौरान मरीज पूरी तरह होश में था और सामने रखे मॉनिटर में स्वयं का आॅपरेशन होता देख रहा था। यहां तक मरीज डा. शिखा द्वारा दी गई वरबल कमांडस को भी फॉलो कर रहा था। डा. शिखा ने बताया कि आरटीज की क्वाइलिंग शरीर के किसी भी हिस्से में जहां कहीं भी सूडोएन्यूरिजम बन गया हो, की जा सकती है
यह सूडोएन्यूरिजम टयूमर, टामा, इन्फेक्शन या इनफलेमिशन के कारण बन सकते हैं।